बेटे की किडनी पिता के लिए बेहतर:डोनेटर-रिसीवर के जेंडर, उम्र, वजन में अंतर तो होगी दिक्कत, मां-पत्नी-बेटी डोनेशन में आगे
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव कई साल से किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं। अब उनकी जान बचाने के लिए बेटी रोहिणी आचार्य अपनी एक किडनी देने के लिए आगे आई हैं। अब उनका मेडिकल चेकअप का प्रोसेस चल रहा है।
बताया जा रहा है कि लालू 20 से 24 नवंबर के बीच सिंगापुर जाएंगे, जहां उनका किडनी ट्रांसप्लांट हो सकता है।
बात किडनी ट्रांसप्लांट की हो तो बेटियां, मांएं या घर की महिलाएं ही परिवार के किसी सदस्य की जान बचाने के लिए ऑर्गन डोनेशन में आगे आती हैं।
सबसे पहले तो ये जान लेते हैं कि अंगदान क्या है और इसमें महिलाओं की क्या स्थिति है।
जीवित इंसान किसी परिजन को कर सकता है अंगदान, ब्रेनडेड डोनर दे सकता है 9 लोगों को जिंदगी
डॉक्टरों के मुताबिक, अंगदान दो तरह से होता है। पहले में जीवित डोनर अपनी एक किडनी, एक फेफड़ा, लिवर या आंतों का एक हिस्सा दान कर सकता है।
लेकिन यह अंगदान वह सिर्फ अपने परिजन या किसी करीबी रिश्तेदार को ही कर सकता है। दूसरा मृत्यु (ब्रेन डेड) के बाद अंगदान होता है। इसमें ब्रेन डेड व्यक्ति के हार्ट, लंग्स समेत कुल 25 ऑर्गन दूसरे जरूरतमंद लोगों के काम आ सकते हैं।
इससे एक इंसान अपनी मृत्यु के बाद एक साथ 9 लोगों को जिंदगी दे सकता है। कोई व्यक्ति चाहे तो सिर्फ अपनी आंखें डोनेट करने का संकल्प ले सकता है या फिर अपना पूरा शरीर भी डोनेट कर सकता है।
ऑर्गन डोनेशन की चर्चा के बीच इस ग्राफिक से जानते हैं कि दुनिया में पहली किडनी किसकी ट्रांसप्लांट की गई थी
मांओं ने सबसे ज्यादा अपने बच्चों को दी किडनी, बीवियों ने अपनी किडनी देकर बचाई पति की जान
अंगदान में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं जबकि अंग पाने की स्थिति में पीछे हैं। ऑर्गन डोनेशन में यह असमानता विकासशील देशों में ज्यादा देखने को मिलती है।
जयपुर के महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के डॉ. जितेश जेश्वानी और सूरज गोदरा ने 2013 और 2018 के बीच अपने मेडिकल कॉलेज में किडनी दान करने वाले 600 लोगों पर स्टडी की। उन्होंने पाया कि अंगदान करने वालों की संख्या बढ़ रही है।
खास बात यह है कि इसमें 78 फीसदी महिलाएं हैं, जो अंगदान के लिए खुद आगे बढ़कर आईं। जबकि ऐसा करने वाले पुरुषों की संख्या महज 22 फीसदी रही।
इनमें भी मांओं की तादाद ज्यादा रही जिन्होंने अपनी संतान की जिंदगी बचाने के लिए ऑर्गन डोनेट किए। जिन 600 लोगों ने अपनी किडनी दान की उनमें 181 मांएं थीं जिन्होंने अपने बच्चों का जीवन बचाया। 102 महिलाओं ने अपने पति को किडनी दान की। 98 पुरुषों यानी 16.7 फीसदी ने अपने बच्चे के लिए किडनी दान की।
इन ग्राफिक्स से महिलाओं के किडनी डोनेशन और उनके किडनी पाने का दिल्ली एम्स का आंकड़ा जान लेते हैं
अब यह जानते हैं कि ऑर्गन डोनेशन का सिस्टम कैसे काम करता है।
ब्रेनडेड इंसान की किडनी 72 घंटे के भीतर करनी होती है ट्रांसप्लांट
अगर सामान्य मौत है तो सिर्फ आंखें और त्वचा ही डोनेट की जा सकती हैं। वहीं, दूसरे अंग केवल ब्रेन डेड होने की स्थिति में ही काम के होते हैं।
ब्रेन डेड होने पर व्यक्ति का दिमाग पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है। ऐसे इंसान के जिंदा रहने की संभावना बहुत कम होती है। ब्रेन डेड मरीज के वेंटिलेटर पर होने के कारण उसके दूसरे अंग काम करते रहते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति के अधिकांश ऑर्गन और टिशूज डोनेट किए जा सकते हैं।
आमतौर पर ब्रेन डेड व्यक्ति के शरीर से निकालने के बाद किडनी 72 घंटे, लिवर 24 घंटे, कॉर्निया 14 दिन और दिल और फेफड़े 4 से 6 घंटे के भीतर ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं।
इस ग्राफिक से जानेंगे कि कौन-कौन अंगदान कर सकता है और 18 साल से कम उम्र के ऑर्गन डोनर को लेकर क्या नियम है
ऑर्गन ट्रांसप्लांट में मायने रखते हैं लिंग और उम्र
बीएमसी नेफ्रोलॉजी की 2020 में आई एक रिसर्च के मुताबिक ऑर्गन ट्रांसप्लांट में महिलाएं भले ही आगे हैं, मगर इस प्रक्रिया में जेंडर काफी मायने रखता है।
किडनी ट्रांसप्लांट की ही स्थिति में रिसीपिएंट की उम्र, बॉडी मास इंडेक्स (BMI), सीरम क्रिएटनिन और डायलिसिस की पॉजिटिव हिस्ट्री जैसे फैक्टर्स देखे जाते हैं, मगर सबसे अहम चीज जो पूरी दुनिया में नजरअंदाज की जाती है, वो है डोनर और रिसीपिएंट्स का जेंडर। यानी अंगदान करने वाले और लेने वाले का जेंडर।
किडनी ट्रांसप्लांट में जेंडर कितना मायने रखता है, ये आगे जानेंगे, लेकिन इस ग्राफिक से देश में डायलिसिस की स्थिति जान लेते हैं
1,113 ऐसे लोगों पर रिसर्च की गई, जिनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। नतीजों में ये सामने आया कि सबसे सफल किडनी ट्रांसप्लांट उन लोगों का रहा, जिनमें डोनर और रिसीपिएंट दोनों ही पुरुष रहे या पुरुष डोनर थे और महिला रिसीपिएंट थी।
नतीजों में यह बात बेहद प्रमुखता से कही गई कि किडनी ट्रांसप्लांट में जेंडर मैचिंग बेहद जरूरी है। किडनी ट्रांसप्लांट के कुछ ही मामले ऐसे थे, जिनमें डोनर पुरुष और रिसीपिएंट महिला रही। इनकी सक्सेस रेट काफी कम देखने को मिला।
वहीं, डोनर अगर महिला है और उसने किसी पुरुष को अपनी किडनी दी है तो वह ट्रांसप्लांट ज्यादा समय तक सफल नहीं रहा। खास तौर पर ऐसे पुरुषों में जो उम्रदराज थे और लंबे समय से डायलिसिस पर थे।
45 पार हो उम्र तो किडनी स्वीकारने में शरीर को आती हैं दिक्कतें
‘जर्नल ऑफ द अमेरिकन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, किडनी ट्रांसप्लांट की कामयाबी जेंडर और उम्र पर निर्भर करती है। 1.6 लाख लोगों पर की गई इस स्टडी में कहा गया है कि जिन महिलाओं का किडनी ट्रांसप्लांट होता है कुछ समय के बाद उनमें किडनी फेल होने की आशंका ज्यादा रहती है।
अगर उम्र 45 पार है तो यह आशंका और बढ़ जाती है। ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट से पहले बॉडी की कड़ी जांच जरूरी है।
किडनी देने-लेने वाले दोनों ही पुरुष हों तो ज्यादा ठीक
‘किडनी डिजीज एंड रिसर्च सेंटर-इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसप्लांटेशन साइंसेज’ में प्रोफेसर डॉ. विवेक कुटे की 2020 में छपी एक रिसर्च में भी यही सामने आया कि भारत में अंगदान करने वालों में 78 फीसदी महिलाएं हैं। जब किडनी की महिलाओं को जरूरत होती है तो केवल 19 फीसदी को ही किडनी मिल पाती है। ‘नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन’ (NOTTO) के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए डॉ. कुटे 20 साल की स्टडी के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
NOTTO की डायरेक्टर डॉ. वसंथी रमेश ने एक इंटरव्यू में बताया था कि अगर डोनर पुरुष है तो उसे पुरुष का ही ऑर्गन ट्रांसप्लांट करना बेहतर रहेगा, ताकि ऑर्गन के मिसमैच होने की आशंका कम से कम रहे। हालांकि, महिला डोनर को हतोत्साहित नहीं किया जा रहा है, मगर डोनर और रिसीपिएंट का जेंडर एक जैसा हो तो ज्यादा अच्छा है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में ऑर्गन डोनेशन में डोनर का जेंडर 50:50 रहता है। यह अनुपात पुरुषों के फेवर में ज्यादा रहता है।
पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा क्यों डोनेट करती हैं किडनी
किसी को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है, तो परिवार के पुरुष सदस्यों की तुलना में आमतौर पर मां, बहन या पत्नी ही किडनी देने के लिए आगे आती हैं।
नेफ्रोलॉजिस्ट और किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट डॉ. विजय कुमार सिन्हा ने इसकी 3 बड़ी वजहें बताईं:
1- ज्यादा इमोशनल होती हैं महिलाएं
एक तो महिलाएं ज्यादा इमोशनल होती हैं। परिवार में कोई तकलीफ में होता है, तो वे जल्दी भावुक हो जाती हैं। इसलिए पुरुषों की तुलना में वे ऑर्गन डोनेट के लिए जल्दी तैयार हो जाती हैं।
2- होममेकर और कामकाजी होने का अंतर
दूसरा, हमारा समाज पुरुष प्रधान है। घर से बाहर के काम, नौकरी, बिजनेस पुरुष ही ज्यादा करते हैं। ऐसे में जब ऑर्गन डोनेशन की बात आती है, तब परिवार के पुरुष सदस्य सोचते हैं कि कहीं उनके कामकाज पर इसका असर न पड़ने लगे। वहीं, महिलाएं होममेकर रहती हैं। इसलिए ये माना जाता है कि वे आसानी से किडनी दे सकती हैं।
3- मानसिक दबाव झेलती हैं महिलाएं
समाज में महिलाओं की छवि ममता की देवी वाली बना दी गई है। त्याग की उम्मीद उनसे ही ज्यादा की जाती है। ऐसे में कोई बीमार होता है, तो महिलाओं पर एक तरह का मानसिक दबाव आ जाता है। उस पर भी अगर वे वर्किंग वुमन नहीं हैं, पैसे नहीं कमा रही हैं, तो यह मानसिक दबाव और बढ़ जाता है। ऐसे में पुरुषों के मुकाबले किडनी डोनेट करने के लिए वे जल्दी तैयार हो जाती हैं।
धीरे-धीरे आ रहा बदलाव, पुरुष भी डोनेट करने लगे हैं किडनी
डॉ. विजय कुमार सिन्हा ने बताया कि समाज में बदलाव के साथ ऑर्गन डोनेशन के ट्रेंड में भी बदलाव आ रहा है। पुरुषों के साथ महिलाएं भी काम पर जाने लगी हैं। लोग जागरूक हो रहे हैं और यह मिथ दूर हो रहा है कि किडनी डोनेट करने का असर वर्किंग लाइफ पर पड़ेगा। पति-पत्नी दोनों वर्किंग हैं। ऐसे में किसी के बीमार होने पर पति, पिता और भाई भी किडनी डोनेट करने के लिए आगे आने लगे हैं। हालांकि, अभी भी इस मामले में बहुत बदलाव होने की जरूरत है।
कुछ बातों से तय होता है कितना सक्सेसफुल होगा ट्रांसप्लांट
किडनी ट्रांसप्लांट कितना सक्सेसफुल होगा, यह तय होता है डोनर की किडनी किस हाल में है, उसकी वर्किंग कैपेसिटी कैसी है, डोनर और मरीज की ब्लड रिपोर्ट्स कैसी हैं, कितनी मैच कर रही हैं, ट्रांसप्लांट में कितना वक्त लगा, मरीज किस हाल में है और उसकी देखभाल किस तरह की जा रही है, इन सब बातों पर ही निर्भर करता है कि ट्रांसप्लांट कितना सफल होगा।
अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी ख्याल रखना बेहद जरूरी
डॉ. विजय कहते हैं कि ट्रांसप्लांट के वक्त तो अस्पताल और डॉक्टर मरीज की देखभाल कर लेते हैं। लेकिन, मरीज के डिस्चार्ज होने के बाद उसकी देखभाल कैसे की जा रही है, मरीज और तीमारदार की सूझबूझ कैसी है, डॉक्टर की सलाह पर कितना अमल किया जा रहा है, दवाएं समय पर खा रहे हैं या नहीं, खानपान कैसा है, ट्रांसप्लांट के बाद ये बातें बहुत मायने रखती हैं।
आपको ये भी बताते चलें कि महिलाएं अपने ऑर्गन डोनेट करने के बाद भी खुश रहती हैं। इसलिए फिजिकली और इमोशनली और स्ट्रॉन्ग बनती हैं, लेकिन ऑर्गन पाने के मामले में महिलाएं पीछे हैं।
किडनी दान करने वाली महिलाएं ज्यादा खुश
अपने देश में किडनी दान करने के मामले में महिला-पुरुषा का अनुपात 6:1 का है। अंगदान करने वाली महिलाएं विकसित देशों की ऑर्गन डोनर महिलाओं की तुलना में अशिक्षित और बेरोजगार हैं। लेकिन रिसर्च का दावा है कि अंगदान के बाद भारतीय महिलाओं का जीवन बेहतर हुआ।
नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिसर्च पेपर में कहा गया है कि 73 महिलाओं पर स्टडी की गई। किडनी डोनेट करने से 2 सप्ताह पहले और छह महीने बाद की उनकी मानसिक स्थिति जानी गई।
रिसर्च में पाया गया कि किडनी डोनेट करने के बाद फिजिकली, सोशल रिलेशनशिप, साइकोलॉजिकली हर लिहाज से महिलाओं के जीवन में सुधार आया है। इन महिलाओं में डिप्रेशन में कमी पाई गई। उन महिलाओं की क्वालिटी ऑफ लाइफ में ज्यादा सुधार दिखा जिन्होंने अपने बच्चों को किडनी दी थी।
लालू प्रसाद यादव के किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़ी अन्य खबरें यहां पढ़ें…
लालू और बेटी रोहिणी का ब्लड ग्रुप AB पॉजिटिव, इसी महीने हो सकता है ट्रांसप्लांट
लालू प्रसाद की बेटी डॉ रोहिणी आचार्या उन्हें किडनी डोनेट करेंगी। रोहिणी ने कहा है कि ‘ मैं डेस्टिनी का बच्चा हूं और पापा को अपनी किडनी देते हुए बहुत गर्व महसूस कर रही हूं।’ वे सिंगापुर में रहती हैं और लालू प्रसाद का किडनी ट्रांसप्लांट सिंगापुर के वर्ल्ड लेबल के सेंटर फॉर किडनी डिजीज में होने वाला है।
लालू और बेटी रोहिणी का ब्लड ग्रुप AB पॉजिटिव:इसी महीने हो सकता है ट्रांसप्लांट; रोहिणी बोलीं- पापा को किडनी देकर प्राउड फील करूंगी
लालू प्रसाद की बेटी डॉ रोहिणी आचार्या उन्हें किडनी डोनेट करेंगी। रोहिणी ने कहा है कि ‘ मैं डेस्टिनी का बच्चा हूं और पापा को अपनी किडनी देते हुए बहुत गर्व महसूस कर रही हूं।’ वे सिंगापुर में रहती हैं और लालू प्रसाद का किडनी ट्रांसप्लांट सिंगापुर के वर्ल्ड लेबल के सेंटर फॉर किडनी डिजीज में होने वाला है।
राजद अध्यक्ष लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने कहा- हां, मैं खुशनसीब हूं कि पापा लालू की बेटी हूं और उन्हें अपनी किडनी देते हुए बहुत गर्व महसूस कर रही हूं।
उसने तो अपना ब्लड भी मैच करा लिया है। लालू और रोहिणी दोनों का एक ही ब्लड ग्रुप है- एबी पॉजिटिव। सिंगापुर में रोहिणी का ब्लड जब लालू से मैच हुआ तो वह अड़ गई कि पापा को किडनी तो मैं ही दूंगी।
पिछले महीने इससे जुड़ी तमाम जांच की गई। कुछ जांच रह गई है क्योंकि 25 अक्टूबर तक ही लालू प्रसाद को देश से बाहर रहने की अनुमति कोर्ट से मिली थी। इसलिए इंडिया में कुछ जरूरी जांच कराने के बाद लालू प्रसाद सिंगापुर जाएंगे। इसी महीने लालू प्रसाद सिंगापुर जाएंगे। रोहिणी आचार्या खुद एक डॉक्टर हैं, इसलिए वे किडनी की बीमारी को और किडनी ट्रांसप्लांट को अच्छी तरह से समझती हैं।
लालू जब पटना में भर्ती थे तब लिखा था – माई हीरो, माई बैकबोन, गेट वेल सून
लालू प्रसाद जब पटना के पारस अस्पताल में जुलाई माह में भर्ती हुए थे तब उनकी स्थिति काफी सीरियस हो गई थी। उन्हें एयर एंबुलेंस से दिल्ली भेजा गया था। तब रोहिणी आचार्या ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था- ‘माई हीरो, माई बैकबोन पापा, गेट वेल सून, हर बाधाओं से जिसने पाई है मुक्ति, करोड़ों लोगों की दुआएं हैं जिनकी शक्ति।’ रोहिणी आचार्या के पोस्ट से यह दिखता रहा है कि वे लालू प्रसाद के बेहद करीब हैं। लालू प्रसाद से जुड़ा वीडियो भी उनके इंस्टाग्राम और फेसबुक आदि पर दिखता रहा है।
सोशल मीडिया पर रोहिणी इतनी एक्टिव अन्य कोई संतान नहीं
बता दें कि लालू परिवार की सभी नौ संतानों में रोहिणी जितनी एक्टिव सोशल मीडिया पर रहती हैं दूसरा कोई नहीं। रोहिणी की पॉलिटिकल समझ भी खूब है। वे शब्दों का चयन भी सोच समझ कर करती हैं जो विरोधियों को सीधे चुभती हैं। हाल में गोपालगंज उपचुनाव में कई तरह के बयान आए पर लालू परिवार से रोहिणी ने सबसे कड़ा बयान मामा साधु यादव पर दिया।
रोहिणी ने लिखा- ‘तेजस्वी अर्जुन के तीर की भांति अपने लक्ष्य पर निगाहें जमाए रखें, राहों में थोड़ी बहुत मुश्किलों तो आ ही जाती है, कभी ओवैसी के रूप में तो कभी कंस के रूप में, मगर मुश्किलों से लड़कर ही बीजेपी जैसी षडयंत्रकारी पार्टी को हराना है और वो भी ऐसी हार जैसे भारत से अंग्रेजी सत्ता की विदाई हुई हो।’
रोहिणी ने एक अन्य पोस्ट में लिखा- ‘इस बार तो कंस मामा श्री कृष्ण के प्रकोप से बच गए, अगली बार मिट्टी में मिलना तय है, गोपालगंज की जनता का यही संदेश है।’ बता दें गोपालगंज में साधु यादव की पत्नी इंदिरा यादव भी मैदान में उतरी थी और राजद उम्मीदवार मोहन गुप्ता की वहां हार हो गई, बीजेपी की कुसुम देवी की वहां जीत हो गई।
लालू प्रसाद की सात बेटियां
1. मीसा भारती – ये लालू प्रसाद की सबसे बड़ी बेटी हैं। डॉक्टर बीटिया। लालू प्रसाद ने इन्हें दूसरी बार राज्यसभा भिजवाया है। मीसा भारती की शादी शैलेश से हुई है। वे सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। इन दोनों की शादी 1999 में हुई। मीसा भारती को दो बेटी और एक बेटा है। पटना मेडिकल कॉलेज ने इन्होंने एमबीबीएस किया है।
2. रोहिणी यादव – ये लालू प्रसाद की दूसरी बेटी हैं और सिंगापुर में अपने परिवार के साथ रहती हैं। ये भी डॉक्टर हैं। अपना नाम रोहिणी आचार्या भी लिखती हैं। लालू परिवार में सबसे ज्यादा सोशल मीडिया पर अगर कोई एक्टिव रहता है तो वो रोहिणी हैं। रोहिणी ही लालू प्रसाद को किडनी दे सकती हैं। रोहिणी की शादी 2002 में हुई थी। औरंगाबाद में ससुराल है। पति शमशेर सिंह कंप्यूटर इंजीनियर हैं। रोहिणी ने तीन बच्चे हैं। रोहिणी ने जमशेदपुर के महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट से एमबीबीएस की पढ़ाई की है।
3. चंदा यादव – ये लालू प्रसाद की तीसरी बेटी है। चंदा की शादी 2006 में पायलट विक्रम यादव से हुई है। चंदा ने एलएलबी की पढ़ाई पुणे के कॉलेज से की है।
4. रागिनी यादव -ये लालू प्रसाद की चौथी बेटी है। रागिनी की शादी राहुल यादव से हुई है। राहुल समाजवादी पार्टी में हैं। राहुल यादव की पढ़ाई स्विट्जरलैंड से हुई है। रागनी ने बिरला इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी है पढ़ाई की है।
5. हेमा यादव – ये लालू प्रसाद की पांचवी बेटी है। लोग कहते हैं कि लालू प्रसाद को हिरोईन हेमा मालिनी खूब पसंद थी इसलिए उन्होंने इस बेटी का नाम हेमा यादव रखा। इस बात को हेमामालिनी के सामने भी लालू प्रसाद ने कबूला था। हेमा के पति विनीत यादव पॉलटिक्स में हैं। हेमा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीआईटी रांची से की है।
6. अनुष्का राव – लालू प्रसाद की छठी बेटी है। इनकी शादी हरियाणा के मंत्री रह चुके अजय सिंह यादव के बेटे चिरंजीव राव से हुई है। चिरंजीव खुद भी राजनीति करते हैं। अनुष्का ने इंटीरियर डिजाइनिंग की पढ़ाई की है। उन्होंने हरियाणा के कॉलेज से कानून की पढाई भी की है।
7. राज-लक्ष्मी – लालू प्रसाद की सातवीं बेटी और सबसे छोटी बेटी हैं। इनकी शादी मुलायम सिंह यादव के पोते तेज प्रताप सिंह यादव से हुई है। वे मैनपुरी से सांसद रह चुके हैं। राज लक्ष्मी ने नोएडा एमिटी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है।
लालू को किडनी देंगी बेटी रोहिणी:सब ठीक रहा तो इसी महीने होगा ट्रांसप्लांट, इलाज के लिए सिंगापुर जाएंगे लालू
लालू प्रसाद को उनकी बेटी रोहिणी आचार्या किडनी देंगी। सिंगापुर के डॉक्टरों ने जांच के बाद लालू को किडनी ट्रांसप्लांट की अनुमति दे दी है। रोहिणी आचार्या सिंगापुर में ही रहती हैं। जानकारी है कि इस महीने लालू फिर से सिंगापुर जाएंगे और किडनी ट्रांसप्लांट करवाएंगे। लालू प्रसाद किडनी, शुगर, हार्ट के साथ ही कई बीमारियां हैं। इसलिए किडनी ट्रांसप्लांट के लिए उन्हें ज्यादा एहतियात की जरूरत पड़ेगी। दिल्ली एम्स के डॉक्टरों की निगरानी में लालू प्रसाद का इलाज चल रहा है। एम्स के डॉक्टरों से सलाह लेने के बाद ही लालू प्रसाद को इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया था। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिए
लालू प्रसाद को बेटी देगी किडनी:अंगदान में पुरुषों से आगे महिलाएं, किडनी डोनेशन के बाद प्रेग्नेंसी में होगी दिक्कत?
लालू प्रसाद यादव किडनी से जुड़ी प्रॉब्लम का सामना कर रहे हैं। पिछले महीने वे सिंगापुर अपनी बेटी रोहिणी आचार्य के पास गए थे। वहां के डॉक्टर्स ने उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी। जिसके बाद रोहिणी ने अपने पिता को किडनी देने का फैसला किया है। लालू के इसी महीने दोबारा सिंगापुर जाने की संभावना है ताकि किडनी ट्रांसप्लांट हो सके।